बाज़ार के ख़िलाफ़ / मिथिलेश श्रीवास्तव
मैं अपनी नज़रें सम्भ्रान्त ग्राहकों को लुभाने में
व्यर्थ नहीं करता हूँ । उनके आने पर फ़क्-
बत्तियाँ जला देने का रिवाज़ इस दीर्घा में नहीं हैं ।
नहीं है कोई चलन यहाँ उनके इर्द-गिर्द मण्डराने का
और दूसरों की चीज़ो की कमियाँ गिनने और गिनाने का ।
उदास रंग उन्हें पसंद नहीं आता तो नहीं आए
कैनवस का रंग चटकदार मैं नहीं बनाता
मैं नहीं बनाता हवाई क़िले, क़िलों में क्रीड़ा और क्रीड़ा में रति-गति ।
ढहे क़िले को देखकर वे लोग बिदकने लगते हैं
मैं उसे जादुई क़िले में नहीं बदल सकता । कहानियों
की परियों को कैनवस पर नहीं उतार सकता ।
घर ढूँढ़ता हुआ आदमी उन्हें उचक्का लगता है और
उसकी रुकी हुई छाया से वे डर जाते हैं
घर ढूँढ़ते आदमी को मदारी बनाने से मैं इनकार करता हूँ ।
मैं इनकार करता हूँ कि मैं जो भी बना रहा हूँ
बेचने की ख़ातिर बना रहा हूँ ।