बाज़ार में देह / मुकेश निर्विकार
इक्कीसवीं सदी के बाजारवादी दौर में
मेरी देह बन चुकी है बाज़ार और
इसके सारे अंग व्यापारी
अब दायाँ हाथ बांये हाथ से
मांगता है पैसे
और बायाँ हाथ दायंे से
खुजलाने के लिए
पैरों ने कर दी है घोषणा
कि वे नहीं ढ़ोयेंगे अब
पेट का वजन
खामोख्वाह
पेट भी जिद पर अड़िग
शेष अंगों की कैलोरी आपूर्ति
बाधित करने पर उतारू
दिमाग क्षुब्ध क्या हुआ उस दिन से
कि तमाम देह फालिज़ग्रस्त है
यह शरीर के दोनों हिस्सों का परस्पर मतभेद है
घोर वैमनस्य और असहयोग।
अधोअंग
अज़ीब से आर्थिक अपराध में संलिप्त
पैन्ट की चैन कसते
हाथ सिक्का तलाशते
जेब से
सुलभ शौचालय को देने के लिए
मूत्र-विसर्जन करने की कीमत
नाक बेजा चिन्तित हो गयी है
सुनी है जब से उसने
हवा की धौंस
कीमत पर मिलने की
जीवन यकीनन
दुकान से बाहर
लटका हुआ माल अब
बिक्री के लिए उपलब्ध
पैसों में!
हमारी अंतिम आस
'भगवान'
भी चढ़ावे में कैद!