भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाज़ार / अरुण चन्द्र रॉय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मूर्तियाँ
जो बिक गई

ईश्वर हो गईं
पूजी गईं

जो बिक न सकी
मिट्टी रह गईं
मिट्टी में मिल गईं