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बाज़ार / अरुण चन्द्र रॉय
Kavita Kosh से
मूर्तियाँ
जो बिक गई
ईश्वर हो गईं
पूजी गईं
जो बिक न सकी
मिट्टी रह गईं
मिट्टी में मिल गईं