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बाज़ार / विनोद विट्ठल
Kavita Kosh से
एक ही घर में थीं कई घड़ियाँ
अलग था सबका समय
एक ही समय में थे कई कलेण्डर
मौसम भी एक नहीं थे दुनियाभर में
मैं सबसे ज़्यादा दुखी हुआ :
एक होने की शुरुआत बाज़ार से हो रही थी ।