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बाज़ार / सीमा संगसार
Kavita Kosh से
साधने की कला–कौशल है
ज़िन्दगी की वृताकार वाले में!
यह तनी हुई रस्सी पर
संतुलन बखूबी जानती है
वह लड़की!
जब वह नपे तुले क़दमों से
डगमगाती है
उस राह पर
जो टिकी होती है
दो बांस के सहारे...
करतब दिखती वह लड़की
बाज़ार का वह हिस्सा
बन कर रह जाती है
जहाँ सपने खरीदे और बेचे जाते हैं
वह चंद सिक्कों में ही
समेट लेती है
अपने हिस्से का बाज़ार...