भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाज़ आ गए हैं आज हम उनके ख़याल से / रवि सिन्हा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाज़ आ गए हैं आज हम उनके ख़याल से
फ़ुरसत हुई है फ़िक्र-ए-हिज्रो<ref>वियोग</ref> विसाल<ref>मिलन</ref> से

हम भी थे आशना कभी शाहिद<ref>गवाह</ref> थे सब अदीब
अपनी भी क़ुर्बतें<ref>निकटता</ref> रहीं हुस्नो-जमाल<ref>सौन्दर्य</ref> से

तशरीह<ref>स्पष्टीकरण</ref> में जवाज़<ref>औचित्य</ref> में बेशक ग़ुरूर था
चेहरे पे धूप-छाँव थी रंगे-मलाल से

जो नामिया<ref>वनस्पति जैसी विकासमानता</ref> हयात<ref>जीवन</ref> है तो कीमिया<ref>रसायन-शास्त्र</ref> भी हो
कैसे सुकूँ कशीद<ref>आसवन, निचोड़ना</ref> हो शोरिश<ref>उपद्रव</ref> वबाल<ref>झंझट</ref> से

जो रात को शिकस्त मिली जुगनुओं के हाथ
तारीकियों<ref>अँधेरों</ref> को ख़ौफ़ है तिफ़्ले-उजाल<ref>रौशनी के बच्चे</ref> से

वो रौंदते हैं ख़ल्क़ो<ref>लोग</ref>-ज़मीं-आसमाँ-नुजूम<ref>सितारे</ref> 
काँटे निकाल लेते हैं तिरछे हिलाल<ref>नवचन्द्र</ref> से

फ़ितने<ref>दंगा-फ़साद</ref> जगाए हैं कहीं शंखो-अज़ान ने
वाबस्तगी<ref>सम्बन्ध</ref> अज़ल<ref>आदिकाल</ref> से है उनको क़िताल<ref>रक्तपात</ref> से

उम्रे-रवाँ<ref>गतिमान उम्र</ref> उरूज<ref>चढ़ान</ref> पे जज़्बों को पंख थे
बे-पर<ref> बिना पंख</ref> मिलीं बसीरतें<ref>अन्तर्दृष्टियाँ, बुद्धिमत्ताएँ</ref> दौरे-ज़वाल<ref>अवनति</ref> से

इनकी लिखी किताब पे हरगिज़ न जाइए
तस्वीरे-क़ौम साफ़ है मौजूदा हाल से

शब्दार्थ
<references/>