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बाट / उमा अर्पिता
Kavita Kosh से
तुम नदी के
उफनते जल की तरह
आगे ही आगे
दौड़ते चले जा रहे हो
और मैं--
पल-प्रतिपल
किनारे की तरह
बाँहें फैलाये
तुम्हारे आने की
बाट जोह रही हूँ!