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बाड़े की भेड़ें / सुदर्शन वशिष्ठ
Kavita Kosh से
बिना बाड़े के रहती हैं
गद्दी की भेड़ें
सौ दो सौ तीन सौ
एक साथ
कोई बाड़, नहीं बाड़ा नहीं
सभी बैठतीं अंदर अंदर होतीं
एक दूसरे से सट कर
बाहर की ओर मुँह करना
किसी को गवारा नहीं।भा
गद्दी बैठता मजे से दूर
खाना पकाता
बाँसुरी बजाता।
जो रहतीं बाड़े में
खूँटे से बन्धी
चारा छोड़
भागना चाहती बाहर।