भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाढ़ोॅ केॅ दृश्य / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ऊपरोॅ सेॅ बरसा, नीचू से पानी
कन्ने भसलै नाना, कन्ने नानी॥

पानी सें भरलै घरे-घोॅर
कन्ने भागतै लागै डोॅर
तड़पी रही गेलै मरद-जनानी॥

घर गिरै हड़मड़ पानी में रेत
लागै जेन्हों सगरो भूत आरू प्रेत
धरती पर उछलै छै-
‘हथिया’ आरो ‘कानी’॥

तर भेलै आदमी, उपरोॅ से चाप
चिलाय रहलोॅ छै, बचावोॅ हो बाप
कन्ने बचतै राजा कन्ने मह रानी॥

माल-जाल मरलै खुट्ठा पर बांधलोॅ
भांसलोॅ जाय सब, छपरोॅ पर कानलोॅ
कहाँ के डुबलै नै छै निशानी॥

गाछी पर चढ़ी केॅ कोय थरथराय छै
ऊपरोॅ सें बिजली रे आरो डेराय छै
बहाय केॅ लै गेलै बाढ़ सयानी॥

कन्नेॅ सें ऐलै रातै में आफत
चिट्ठी भेजलकै बाढ़ोॅ केॅ मारफत
पढ़तै ई के बलिदानी कहानी॥

घरोॅ में सड़ी गेलै सभ्भेटा ओॅन
सींचेॅ में भला की लागै छै मोॅन
दुःखोॅ सें भरलौॅ भेलै कहानी॥

डुबलै जेठियाना, जंगल गोपाली
आदमी मवेशी सें बंशीपुर खाली
एन.टी.पी.सी. में पानिये-पानी॥

लक्ष्मीपुरोॅ सें भागलै लछमियाँ
पानी सें तर भै गेलै बभनियाँ
कोवा पुलोॅ केॅ टुटलै निशानी॥

घरोॅ में ओॅन नै देहो नै कपड़ा
बाढ़ भैया खौकी देखी हिलै जबड़ा
देखतै दशहरा की आँखी में पानी॥

बांका में बाजी गेलै बाढ़ोॅ के डंका
जेलोॅ सें कन्ने-कन्ने गेलै लड़का
जहाँ तलक नजर जाय पानिये-पानी॥

कहै छै ‘रानीपुरी’ कविता बनाय के
सातो बहिन संग दुरगा माय के मनाय के
फिरू नै दिहोॅ पनचानबे रंग पानी॥