भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाढ़्यौ ब्रज पै जो ऋन मधुपुर-बासिनि कौ / जगन्नाथदास ’रत्नाकर’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाढ़्यौ ब्रज पै जो ऋन मधुपुर-बासिनि कौ
तासौं ना उपाय काहू भाय उमहन कौं ।
कहै रतनाकर बिचारत हुतीं हीं हम
कोऊ सुभ जुक्ति तासौं मुक्त ह्वैं रहन कौं ॥
कीन्यौ उपकार दौरि दोउनि अपार ऊधौ
सोई भूरिभार सौं उबारता लहन कौं ।
लै गयौ अक्रूर क्रूर तब सुख-मूर कान्ह
आए तुम आज प्रान-ब्याज उगहन कौं ॥82॥