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बाढ़ में बह गया इस बार नशेमन मेरा / महेश कटारे सुगम
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बाढ़ में बह गया इस बार नशेमन मेरा ।
देखता रह गया बरसात को आँगन मेरा ।।
वक़्त के साथ बदलती रही दुनियां लेकिन
दर्द की आग में जलता रहा दामन मेरा ।
मेरी उम्मीद का हर बार ज़नाज़ा निकला
हर घड़ी आग उगलता रहा दुश्मन मेरा ।
प्यास में अश्क पिए गम को मुक़द्दर माना।
भूख को धर्म समझता रहा बचपन मेरा ।
देखने वाला समझता सुगम दुश्मन उसको,
बोलता रहता है सच बात जो दरपन मेरा ।।
22-02-2015