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बाढ़ से घिरे गाँव / प्रेमरंजन अनिमेष

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कुछ जलचित्र - कुछ जलचिह्न
 
1. कोशिश

देखता हूँ
अपनी काग़ज़ की
नाव हटा कर

क्या इससे
कुछ कम होता है
जलस्तर...

2. पंचनामा

आग धधक रही थी पहले से

फिर माटी पर
पानी फिरा
पानी पर पवन

टूटा नहीं आसमान...
सरकार का बयान

3. सवाल

कितना कुछ धुला
कितना बह गया
इस बारिश में

मगर कहाँ बहे
जस के तस रहे

औरतों के आँसू
भूखों की लाचारियाँ
आम अवाम की परेशानियाँ...

4. वाकिफ

उसका आना तय था
पर कोई तैयार न था

यह आसपास का
ऐसा खेल था
जिसमें हर कोई पकड़ा गया...

5. समता

भीतर तक हैं तर सब

एक समान हो गए
खड्डे रास्ते नाले
यहाँ से वहाँ तक
भेद कोई नहीं

यह धरती पर
समानता लाने की
कोशिश आसमानी...!

6. रहनुमा

क्या जमीन पर
कोई नहीं ?

आसमान बरस रहा है
और सब
आसमान की ओर ही
देख रहे...

7. दृष्टि

नीचे
प्रलय का
प्रवाह था

कुछ लोग
ऊपर देख रहे थे
इन्द्रधनुष...

8. विडम्बना

डूबी बस
अपनी ही धरती

बाक़ी तो
वैसा ही सूखा

आँखों में वैसी ही रेती
सारा कुछ ज्यों का त्यों परती...


9 प्रतिश्रुति

उधर बून्दें पड़नी
शुरू होतीं
बद-बद

इधर चालू हो जातीं
बूढ़े मन की बुद-बुद...

10. डोलना

जैसे कोई बच्चा किसी बड़े कटोरे को
हिला रहा

कम नहीं हो रहा पानी

खाली इधर से उधर
जा रहा...
                                 
11. उतार

आख़िर पानी उतरा
पर कहीं और का कहाँ

घर का
देहरी का
देह का
चेहरें का
आँखों का

रास्ता कोई तो फिर भी नहीं खुला...

12 अपील

इतना पानी
दाह लगा है

उधर नेताजी निवेदन कर रहे
भावनाओं में मत बहिए...

13. दावा

हवा से
राहत बाँटते
हाथ हिलाते
जनप्रतिनिधि कहते जाते

इस मुश्किल की घड़ी में
हम आपके साथ हैं...

14. आगा-पीछा

इस आपदा के पीछे
किसका हाथ हो सकता है... ?

पानी के पीछे
भला हाथ किसका होगा

बात सीधी-सी है
पानी आया ही इसीलिए

कि नहीं था कोई हाथ
आगे न पीछे...

15. राजी-ख़ुशी

कुछ दिन तड़पे-चिल्लाए
फिर धीरे-धीरे
स्वीकार कर लिया सबने

लगे हुए पानी को
बढ़े हुए दामों को
बीमारी लाचारी को

जैसे सिसकियों के बाद
स्वीकार कर लेती
आदमी को औरत
दुलहन ससुराल को...

16. विजयनाद

जयघोष हुआ

राजपथ से
पानी निकल गया था

गलियों को भला कौन पूछता

एक अकार लग जाए
तो वे गालियाँ हो जातीं...


17. निपट

कभी सूखा
उघाड़ देता
एकबारगी

कभी बाढ़
लपेट लेती

मगन है गाँव
जलमग्न

कोई देख नहीं पाएगा
भीतर-भीतर
वह कितना नग्न...

18. भला

इस पक्ष पर भी गौर कीजिए
कुछ सकारात्मक भी सोचिए
हुकूमत कहती है

देखिए तो
कितनी आसानी से
बाढ़ में बहते-बहते
घर तक मछलियाँ
चली आती हैं...!

19. भरोसा

लौट रही
राहत की सवारी

देखो लिखा हुआ पीछे
फिर मिलेंगे
अगले सैलाब में...

20. ध्यान

हाक़िम सोचिए
व्यग्र होकर कहा मुलाजिमों ने

इतनी जल्दी पानी निकाल देंगे

तो लोग अपना बहुत-कुछ
छान नहीं पाएँगे...


21. जनश्रुति

अगले दिन की ख़बरों में
चर्चा ख़ूब हुई
दौरा था आसमानी
हवाईजहाज़ से थे देख रहे जनप्रतिनिधि

फिर भी आँखों को उनकी
छू गया पानी...

22. बसर

पानी से भरे
ख़ाली घरों में
देवता थे

ताक पर
घुटनों तक
धोती ऊँची किए...


23. मार

बन्धु
जैसे भी हों
हालात

गौर करो तो
हर समय
मौजूद है
वह लात

जो पड़ती हमेशा
ग़रीब के ही पेट पर...

24. एक टेक

छाते नहीं
छत भी नहीं
पास अपने

बारिश धूप शीत के
मुक़ाबले

ऊँचा सिर
छाती चौड़ी

और होंठों पर
गीत एक टुकड़ा...

25. व्यवस्था

बाँध पर ठहरे
लोग इतने
जाने कब से
सरकार ने
बाँध ये
शायद इसीलिए बनाए

एक ओर
इतना पानी
कि डूब जाएँ
गाँव के गाँव

दूसरी तरफ़
राहत ही राहत
धूप में भी ठण्डी छॉंव...!


26. जायजा

तटबन्ध ठीक हैं
स्थिति नियन्त्रण में
बेमानी अफ़वाहें

यह माना गया
कि दरअसल ख़तरे के निशान ही पड़ गए पुराने

27. प्रवाह

इस प्रदेश की ख़ासियत यही

हर साल यहाँ बाढ़ आती

हर साल इधर से
जो अच्छे भले
बह कर कट कर
चले जाते
दूसरे हिस्सों में...


28. निरुत्तर

पानी बहुत जमा हो गया है सरकार...

कितना ? सरकार ने घुड़का
हम बँटवा रहे हैं ना
सत्तू चूड़ा
छिड़कवा रहे चूना...

कितना...!
जनता को पूछने का
हक़ कहाँ...


29. स्थिति

टीलों पर पुलों के ऊपर
कई दिनों से
अपनी गठरियाँ लिए
पड़े हुए कई

और कुछ लोग वहाँ
पहुँचते पानी देखने...

30. श्रेय

लिख कर
हुई हैरानी

कि पानी पर
लिख सकता

वैसे सच तो यही
अपना लिखना क्या

वह तो पानी ने ही
सब रच दिया...

31. पीठ पर पानी

पानी बरस रहा है
फिर पीट-पीट कर

जिनके सिर पर ओट नहीं
डटे हुए हैं
कड़ी पीठ कर..