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बातें करेंगे / सांध्य के ये गीत लो / यतींद्रनाथ राही

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चुक गया
कितना समय
बैठे-बिठाए
अब चलो
कुछ काम की बातें करेंगे

उड़ गए हैं
वे गगन विहगत्व के दिन
अब ज़रा कुछ
पाँव धरती पर धरें हम
सोच लें कुछ बात
अपने खेत की भी
कुछ लुटे खलिहान की बातें करें हम
हाथ पसरे हैं अभी तक भूख के
प्यास के
अब भी अधर सूखे हुए हैं
हो गये हैं देह के अस्तित्व पंजर
डब डबाए आँख के अन्धे कुए हैं
देख लें कुछ
भोर तो अच्छे दिनों के
फिर
सुहानी शाम की
बातें करेंगे!
मुरझ कर
सूखे-झरे सुकुमार सपने
पौध रोपी है
नए आश्वासनों की
लोरियाँ जिनको
ऋचाओं ने सुनायीं
नीतियाँ वे
दासियाँ सिंहासनों की
जाल फैले रेशमी
बन्धन सुनहले
आचरण
मैले, कुटिल
चेहरे लुभावन
शब्द की जादूगरी है
मन्त्र छलना
संहिताओं के नहीं
मन्तव्य पावन
यह प्रगति है
या पतन इन्सानियत का?
हम महज़
अंजाम की बातें करेंगे!
स्वयंभू अवतार
पैग़म्बर हमारे
बाँटते हैं
कुछ नशीले दर्प
अन्धी मान्यताएँ
धर्म गुरुओं से
महन्तों-मन्दिरों से
बहुत लज्जित हो चुकी हैं आस्थाएँ
खुशबुएँ ईमान की
दिल में नहीं हैं
उद्धरण हैं धर्म ग्रन्थों के सुपावन
कर्म में चरितार्थ
गीता ही नहीं तो
व्यर्थ ही है
बाँसुरी का प्रीति-गायन
एक वृन्दावन
बना लें हम कहीं तो
प्राण-धन घनश्याम की
बातें करेंगे!