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बातों का क्या / नईम
Kavita Kosh से
बातों का क्या है
बातें तो चलती रहतीं ।
कतई ज़रूरी नहीं कि कोई बड़ी बात हो,
आड़ी, तिरछी हो या कोई खड़ी बात हो ।
अनगढ़ साँचों में
लेकिन वो ढलती रहतीं ।
छोटा हो या बड़ा भले हो कोई मसला,
नहीं चाहिए इन्हें अलग से कोई असला ।
ख़ुशबू सी कुछ को
पर कुछ को खलती रहतीं ।
शब्द नहीं होते, तब भी ये बाज न आतीं,
संकेतों सेनों से अपनी धाक जमातीं
गिरी गिर गईं
उठकर रोज सम्भलती रहतीं ।