बात आदमी की है, ईश्वर की नहीं / अशोक शाह
यदि ईश्वर है तो भी
उस आदमी को छल, अन्याय और हिंसा करने की
छूट इसलिये नहीं है
कि वह मन्दिर में प्रसाद और दीपक
संस्कृत के कुछ शब्दो के साथ बाँट आता है
और करता है घोषित खुद को पापमुक्त
निष्कलंक शासक
ऐसा नहीं है कि
वह ‘महापण्डित’ पुजारियों के साथ करेगा आक्रमण
और हथिया लेगा ईश्वर का समूचा आशीर्वाद।
और जिनके चढ़ाए पुष्पों में नहीं है गन्ध
अगरबत्तियाँ जिनकी गई हैं मेहरा
वे आशीर्वाद से रह जाएँगे हमेशा के लिए मरहूम
फिर तो ऐसा ईश्वर होना ही नहीं चाहिये था
जो वस्तुओं का विनिमय देख खोलता हो मुँह
यदि है तो
यह ईश्वर किसका है ?
यदि ईश्वर नहीं है तो भी
प्यार तो किया जा सकता है
अपने भाई की तरह की ही जा सकती है सुरक्षा पड़ोसी की भी
क्योंकि सुख का स्त्रोत प्यार ही है
अन्यथा धरती पर सारी बुराइयाँ आती हैं आदमी से ही
और आतीं रहेंगी निरन्तर
जब तक रहेगा आदमी इस धरती पर
या कहीं भी