भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बात ऐसी न सुनी थी किसी दीवाने में / गुलाब खंडेलवाल
Kavita Kosh से
बात ऐसी न सुनी थी किसी दीवाने में
ख़ुद को रो-रोके पुकारा किया वीराने में
उड़ रही हो तेरी आँखों की ही ख़ुशबू हर ओर
रंग कुछ और है नज़रों के ठहर जाने में
हम पे चढ़ता है नशा जिसका शराब और ही है
वह न शीशे में उतरती है न पैमाने में
उम्र भर हमको तड़पने की सज़ा दे डाली
प्यार का नाम लिया था कभी अनजाने में
जा रहा है कोई मुँह फेरके अब तुझसे, गुलाब!
आ गया वह भी किसी औरके बहकाने में