बात ऐसी हुई है क्या साहेब ? / सरवर आलम राज 'सरवर'
बात ऐसी हुई है क्या साहेब ?
हो गए आप क्यों ख़फ़ा साहेब?
कुछ तो कहिए कहाँ कि ये आखिर
लग गई आप को हवा साहेब ?
ख़ामशी और ऐसी खामोशी !
कब मुहब्बत में है रवा साहेब ?
हाय यह कैसी बे-नियाज़ी है ?
रंगे-हस्ती बिखर गया साहेब
क्या कोई मुझसे बद गुमानी है ?
तौबा ,तौबा ! ख़ुदा ! ख़ुदा ! साहेब !
याद है आप को कि मैं हूँ कौन ?
आशना और बावफ़ा ! साहेब !
मुझसे कोई अगर शिकायत है
कीजिए आप बरमला<ref>आमने-सामने</ref> साहेब !
छोड़िए अब मुआफ़ कर दीजिए
कुछ अगर हो कहा-सुना साहेब !
दोस्ती और आश्ती<ref>शान्ति</ref> के सिवा
इस जहाँ में रखा है क्या साहेब ?
आप दिल में हैं ,आप आँखों में
मेरी सूरत है आईना साहेब !
रह-रवे-राहे-आशानाई हूँ
गरचे हूँ शिकस्ता-पा<ref>अपाहिज</ref> साहेब !
दर्दमन्दी के और मुहब्बत के
वादे सब कीजिए वफ़ा साहेब !
मैं भी हो जाँऊ आप ही जैसा
मेरे हक़ में करें दुआ साहेब !
बह्रे-तज़्दीदे-शौक़<ref>नए सिरे से शौक़</ref>’सरवर ’ को
याद करना है क्या बुरा साहेब ?