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बात करनी उससे आसान न थी / शमशाद इलाही अंसारी
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बात करनी उससे आसान न थी,
ज़िन्दगी इतनी कभी वीरान न थी।
चमन का हर फ़ूल उसके दामन में सजाया मैंने,
फ़िर भी उसके चेहरे पर वो मुस्कान न थी।
ज़िन्दगी में, ज़िन्दगी से मैंने कर ली तौबा,
उसकी संगदिली अब बर्दाश्त के काबिल न थी।
"शम्स" डूबने से पहले मौजों को देख ले जी भर
हालाँकि मंज़िल-ए-साहिल कोई बडी़ दुशवार न थी।
रचनाकाल: 20.04.2003