Last modified on 7 मार्च 2019, at 11:50

बात का हे? / सतीश मिश्रा

बाग-बाग बाग हे, बाग-बाग हे गगन
बाग-बाग हे धरा, बाग-बाग हर नयन
बात का हे, काहे आज मुसकुराए दिग-दिगंत?
हो न हो उतर रहल हे आज फिर इहाँ बसंत।

कुहू-कुहू, कुहू-कूहू उतान तान तान के
पीउ-पीउ, पीउ-पीउ-निसान का, निसान के
बात का हे, काहे आम लग रहल जटा से संत?
हो न हो, उतर रहल हे आज फिर इहाँ बसंत

सात रंग रंग रंग खेत आज अंग-अंग
रेत-रेत में उमंग, हे अली कली के संग
बात का हे, काहे नेह-स्नेह के न आदि अंत
हो न हो, उतर रहल हे आज फिर इहाँ बसंत

पंखुरी से लटपटा, पराग छू, चोरा के गंध
झूम-झूम के झंकोर, झुरझुराए मंद-मंद
बात का हे, काहे मन के ताल में लहर अनंत?
हो न हो, उतर रहल हे आज फिर इहाँ बसंत।