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बात की बिगड़ी हुई बस रात में है / विनय कुमार
Kavita Kosh से
बात की बिगड़ी हुई बस रात में है।
रात से ज़्यादा अंधेरा बात में है।
बघनखे पहने हुए हैं फूल गुलचीं
सोच लेना कौन किसके घात में है।
रात मैंने एक टुकड़ा मेघ देखा
वह चंवर सा धूप की बारात में हैं।
स्याहियों से टूटते हैं स्याह जादू
आज भी ताक़त क़लम की ज़ात में है।
आज भी बाज़ार में मरहम नहीं है
आज भी घायल समय सौग़ात में है।
सोच का क्या सोच लेगा सौ सुरंगें
दिल बचाओ दिलशिक़न हालात में है।
दाम के बदले कई सुकरात लेगा
यह ज़हर मिलता नहीं ख़ैरात में है।
अब्र तेज़ाबी समंदर से उठे हैं
आजकल सावन किसी गुजरात में है।
इस लता के फूल मुरझाते नहीं हैं
इस लता की जड़ अभी देहात में है।