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बात को सँभालिए / प्रेमलता त्रिपाठी

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आन मान के लिए
धर्म, सत्य मानिए

अंत हो बुरा नहीं,
बात को सँभालिए ।

ऊँच नीच व्यर्थ है,
लोक लाज साधिए ।

जीत सत्य राह की,
स्वार्थ सिद्धि त्यागिए ।

हो पुनीत भावना,
लोभ को न पालिए।

भेद भाव दूर हो,
द्वेष को बिसारिए,

रोग दोष हो नहीं,
योग से सँवारिए

धैर्य प्रेम की गली,
ईश गेह जानिए।