बात झूठी बोल कर भरमा गया
आदमी हर एक था घबड़ा गया
तैश में सबलोग जब आने लगे
गाँव का माहौल था गरमा गया
ले रहा था वह मज़ा एकान्त में
झूठ उसका फिर तुरत पकड़ा गया
सामने जब सत्य आया उस समय
सिर झुका मक्कार तब शरमा गया
आपसी जो फूट थी होने लगी
भ्रम मिटा कर दृश्य को बदला गया