बात दिल की दिलों में छुपी रह गयी।
दोस्ती मिट गयी दुश्मनी रह गयी॥
साँवरे के दरश की भरी चाह थी
मिल न पाये यही बेबसी रह गयी॥
प्राण-पंछी उड़े पींजरा छोड़ के
आँख लेकिन हमारी खुली रह गयी॥
हिज्र की आग में दिल सुलगता रहा
चैन की रेख कर में लिखी रह गयी॥
अधखिली इक कली वह मसलते रहे
चीख उसकी मगर अनसुनी रह गयी॥
बह रही खून की है नदी हर तरफ
मौन क्यों श्याम की बाँसुरी रह गयी॥
मोह का बन्ध है जो नहीं छूटता
मुक्ति की आस मन में दबी रह गयी॥