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बात पूरी न की कुछ बचा रह गया / शुचि 'भवि'
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बात पूरी न की कुछ बचा रह गया
कुछ तो था जो दबा का दबा रह गया
ज़िन्दगी जब गई मौत आई मगर
दरमयां का जो था फ़लसफ़ा रह गया
ज़ुल्म है हर तरफ़ और कहते हैं वो
मुल्क़ में अब कहाँ हादसा रह गया
अश्क में भी बग़ावत की बू आ गई
क्या कोई आँख का अब सगा रह गया
कौन रोता है मैयत पे ‘भवि’ आजकल
बस रिवाजों का ये सिलसिला रह गया