भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बात फुरकत की तुम किया न करो / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
बात फुरकत की तुम किया न करो
जख़्म दिल को नये दिया न करो
बन गयी दर्द का समन्दर है
जिंदगी के लिये दुआ न करो
झुक के चलना सभी को है लाज़िम
रब से खुद को कभी बड़ा न करो
बेवफ़ाई पे हो भड़क जाते
खुद किसी से भले वफ़ा न करो
हैं भरोसे के सब कहाँ क़ाबिल
भेद हर एक से कहा न करो
साँस घुट जाये ग़र कलेजे में
कैद अल्फ़ाज़ यूँ किया न करो
दिन हैं मौसम बदल ही जायेंगे
दर्द दिल मे यूँ ही सहा न करो