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बात फुरकत की तुम किया न करो / रंजना वर्मा

बात फुरकत की तुम किया न करो
जख़्म दिल को नये दिया न करो

बन गयी दर्द का समन्दर है
जिंदगी के लिये दुआ न करो

झुक के चलना सभी को है लाज़िम
रब से खुद को कभी बड़ा न करो

बेवफ़ाई पे हो भड़क जाते
खुद किसी से भले वफ़ा न करो

हैं भरोसे के सब कहाँ क़ाबिल
भेद हर एक से कहा न करो

साँस घुट जाये ग़र कलेजे में
कैद अल्फ़ाज़ यूँ किया न करो

दिन हैं मौसम बदल ही जायेंगे
दर्द दिल मे यूँ ही सहा न करो