भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बात बड़ी गैहरोॅ छै / मनीष कुमार गुंज

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कहै रहै बाप दादा औवल-औवल फैकड़ा
तखनी तेॅ बुझलौॅ नय आबे बुझलौ जेकरा।

पढ़बें-लिखबें होमें नवाब
खेलमंे-कूदमें होमें खराब।
बात बड़ी गैहरोॅ छै बूझै के फेर
सोचै में समझै में लागै छै देर