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बात बढ़ती गई आगे मिरी नादानी से / ग़ुलाम मुर्तज़ा राही
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बात बढ़ती गई आगे मिरी नादानी से
कितना अर्ज़ां हुआ मैं अपनी फ़रावानी से
ख़ाक ही ख़ाक नज़र आई मुझे चारों तरफ़
जल गए चाँद सितारे मिरी ताबानी से
बे-तहाशा जिए हम लोग हमें होश नहीं
वक़्त आराम से गुज़रा कि परेशानी से
अब मिरे गिर्द ठहरती नहीं दीवार कोई
बंदिशें हार गईं बे-सर-ओ-सामानी से
आएगा ऐसा भी इक मोड़ सफ़र में ‘राही’
गर्द भी मेरी न पाओगे तुम आसानी से