बात बहुत साफ़ है / कुमारेंद्र पारसनाथ सिंह
उन्होंने
अपनी रोटी को
पहचान लिया है सिर्फ -
और उनकी कोई गलती नहीं ।
अपनी इज्जत
सबको प्यारी होती है –
उन्हें भी
अपनी इज्जत का ख्याल है,
और कुछ नहीं ।
जिस छत के नीचे
आप सो रहे हों
उसमें
सहसा आग लग जाने पर
परेशानी तो होगी ही।
बाल बच्चों को जलते देख,
मुमकिन है, आप पागल भी हो उठें
फिर,
उन्हें क्यों दोष देने लगते हैं आप
जब अपनी जलती झोपड़ी को बचाने में
असमर्थ
वे आप पर टूट पड़ते हैं !
आपके हाथ बन्दूकें होती है,
और सरकारी पुलिस तैनात रहती है
बचाव में।
फिर भी,
सोए में ही आपका खून हो जाता है
तो वे क्या करें ?
ये तो पता है आपको
कि वे निहत्थे होते हैं,
और उनके बचाव के लिए
उनकी अपनी कोई सरकार भी
खड़ी नहीं रहती ।
फिर वे क्या कर सकते हैं
जो उन्हें आखिर मरना ही हो ?
आपको तो बल्कि खुश होना चाहिए
कि वे अब मरना सीख रहे हैं।
जैसे होता है मरते हैं लोग -
बीच में आप पड़ जाते हैं।
वे तो मरना सीख रहे हैं,
उन्हें इसी तरह मरना है –
जान देकर भी भरना है
इस धरती पर गिरने का कर्जा ।
बेचारे कर्जा ही तो उतार रहे हैं,
फिर क्यों परेशानी होती है आपको !
यूँ ही सर पर उठा लेते हैं आसमान –
आपकी रोटी तो नहीं छीन ली है !
उन्होंने अपनी रोटी को पहचान लिया है सिर्फ -
और क्या किया है?
४ अक्तूबर ८६