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बात यह नहीं है / तेजी ग्रोवर

बात यह नहीं है कि कहीं भी मन नहीं लगता, कहीं भी जड़
महसूस नहीं होती, कहीं भी अकेलापन साथ नहीं छोड़ता।
बात ठीक इससे उलट है। हर जगह मन लगता है। हर
जगह जड़ महसूस होती है। हर जगह सान्निध्य है, स्नेह है,
साथ है। आत्मीयता से भरे हुए नक्षत्र पर किससे कहूँ कि
ऐसा है... कौन मेरी बात का विश्वास करेगा?