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बात / खुशीलाल मंजर

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बात
सच छेकै या कि झूठ
लेकिन एकबात छै
आरो
हौ बातऽ ये सानलऽ राज छै
आय महलऽ में
दिनऽ केॅ ईयोर रहै छै
आरो रात के अनहार
हेकरा तेॅ तोहे खूब समझतें हीभऽ
कि हुनी रातऽ केॅ दिन
आरो दिनऽ कऽ रात बनाय छै
आय
अन्याय करै बाला केॅ ईनाम
आरौ निमुहा केॅ जेल
हेकरा तेॅ तोहें खूब समझतें होभऽ
कि हुनी इसाफऽ रऽ
दिनगरे खून करै छै
हमरा छपरी पर ठाठ नैं
आरो
हुन्हीं महलऽ रऽ उपरऽ पर
बाँस खाडऽ करै छै
हेकरा तेॅ तोहे खूब समथतैं होभऽ
कि हुन्ही अकासऽ में सीढ़ी लगाय छै
आय गाँव आरो सहरऽ में
कोय खास अन्तर नै छै
अन्तर खाली हेतनें टा रऽ छै
कि सहरऽ में आदमी
दिनकऽ सस्तऽ
आरो गाँवऽ में रात केॅ