भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बात / सरोज कुमार
Kavita Kosh से
कविता जब लिखी थी
आईना थी
मेरे मन की बात का
मनभावन, रिझावन !
अब वह बात नहीं रही!
बात, कोई बुत तो होती नहीं
कि बनी ही रहे!
रही, रही। न रही, न रही!
बात चाहे नहीं रही
पर कविता तो है यथावत।
जो आईना थी!
उसमे वह बात भी है
जो अब नहीं रही!