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बादबाँ खुलने से पहले का / परवीन शाकिर

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बादबाँ खुलने से पहले का इशारा देखना
मैं समन्दर देखती हूँ तुम किनारा देखना

यूँ बिछड़ना भी बहुत आसाँ न था उस से मगर
जाते जाते उस का वो मुड़ के दुबारा देखना

किस शबाहत को लिये आया है दरवाज़े पे चाँद
ऐ शब-ए-हिज्राँ ज़रा अपना सितारा देखना

आईने की आँख ही कुछ कम न थी मेरे लिये
जाने अब क्या क्या दिखायेगा तुम्हारा देखना