भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बादर झूम झूम बरसन लागे / छीतस्वामी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बादर झूम झूम बरसन लागे ।
दामिनि दमकत चोंक चमक श्याम घन की गरज सुन जागे ॥१॥
गोपी जन द्वारे ठाडी नारी नर भींजत मुख देखन कारन अनुरागे ।
छीतस्वामी गिरधरन श्री विट्ठल ओतप्रोत रस पागे ॥२॥