भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बादलों का एक टुकड़ा आसमाँ में खो गया / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बादलों का एक टुकड़ा आसमाँ में खो गया
एक बच्चा गोद में आकर हमारी सो गया।

जब गुलाबी रंग में ख़ुशबू भी शामिल हो गयी
खिल उठा सारा बगीचा फूल जैसा हो गया।

वो बुजुर्गो की दुआ थी काम जो आयी मेरे
एक बूढ़ा चाँद, पर लाखों सितारे बो गया।

आपकी उँगली पकड़कर मैं बड़ा होता रहा
रूप मेरा आपकी मुस्कान जैसा हो गया।

चंद ख़्वाबों के बहाने कौन आकर पास मेरे
जख्म जितने थे दिलों में आँसुओं से धो गया।