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बादलों के लिये / तरुण भटनागर
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बरसाती नाला आैर आकाश,
हमेशा लड़ते रहते हैं,
बादलों के लिए ़ ़ ़।
पर अक्सर मैं,
उस लड़ाई को,
गमिर्यों में ही जान पाता हंू,
जब लड़ाई में हारने के बाद,
वह बरसाती नाला,
टीलों, डूहों के बीच,
सूखा सा पड़ा होता है,
गमर् गहरी घाटियों में ़ ़ ़
आैर,
मैं सोचने लगता हंू,
अरे!
इस साल भी।
आखि़र कब तक?