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बादलों ने बांध रक्खी है हवा बरसात की / रतन पंडोरवी

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बादलों ने बांध रक्खी है हवा बरसात की
आज ऐ साक़ी कोई तो चीज़ ला बरसात की

रंज, ग़म, हसरत, तमन्ना, दर्द, गिरिया, फर्ते-यास
मेरे दिल ने परवरिश की है बराबर सात की

नागहानी तौर पर अक्सर बरस पड़ते हैं वो
मैं ने देखी खूबरूइओं में अदा बरसात की

फिर दहक उट्ठे कुछ अंगारे दिले-पुरसोज़ में
आग बरसाती हुई आयी हवा बरसात की

आज हर दीं-दार का सारा भरम खुल जायेगा
कुफ़्र बरसाती हुई आई घटा बरसात की

अब ख़ुदा हाफ़िज़ तिरी ऐ खिरमने-सब्र-ओ-सुकूं
बिजलियाँ दिल पर गिरानी है घटा बरसात की

चश्मे-तर बाक़ी रहे झड़ियाँ की फिर परवा है क्या
क्यों बरसती है मिरे घर में घटा बरसात की

देखिये मैदान किस के हाथ रहता है 'रतन'
चश्मे-गिरियां के मुक़ाबिल है घटा बरसात की।