भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादलों में लग गई है आग दिन की / त्रिलोचन
Kavita Kosh से
बढ़ रही क्षण क्षण शिखाएं
दमकते अब पेड़-पल्लव
उठ पड़ा देखो विहग-रव
गये सोते जाग
बादलों में लग गई है आग दिन की
पूर्व की चादर गई जल
जो सितारों से छपाई
दिवा आई दिवा आई
कर्म का ले राग
बादलों में लग गई है आग दिन की
जो कमाया जो गंवाया
छोड़, उसका छोड़ सपना
और कर-बल, प्राण अपना
आज का दिन भाग
बादलों में लग गई है आग दिन की
वास तज कर विचरते पशु
विहग उड़ते पर पसारे
नील नभ में मेघ हारे
भूमि स्वर्ण पराग
बादलों में लग गई है आग दिन की