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बादलों से सलाम लेता हूँ(कविता) / गोपालदास "नीरज"

बादलों से सलाम लेता हूँ
वक्त क़े हाथ थाम लेता हूँ
सारा मैख़ाना झूम उठता है
जब मैं हाथों में जाम लेता हूँ