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बादल आ गए हैं / विमल कुमार
Kavita Kosh से
अब मुझे किसी बात की चिन्ता नहीं
नहीं है कोई डर
बादल आ गए हैं
दफ़्तर से लौटने पर
मैंने देखा घर में
बारिश की दो बूँदें
तुम्हारे माथे पर पड़ी थीं
कोई बादल ही था
जो छिपा हुआ था
पीछे तुम्हारे काले जूड़े में
उसी दिन मुझे
उस बादल से
तुमसे बहुत प्यार हो गया था
चलते-चलते अन्धेरे में
जैसे मैं जंगल से पार हो गया था।