भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादल उतरे ताल पर / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
जाने कहाँ कहाँ से आए
बादल उतरे ताल पर
देख उन्हें
हंस पड़ी हवाएँ
लहराएँ, वो सौ बल खाएँ
बाँस वनों में इठलाती हैं
चुपके कानों में बतियाएँ
पत्ता पत्ता
बहक रहा है
मदिर हवा की चाल पर
बादल उतरे ताल पर
लुढ़क रहीं
बून्दें पुरईन पर
जैसे हो मोती की थाली
चमक उठीं पँकज पँखुरियाँ
गहराई होठों की लाली
नन्ही सी
जलकुम्भी देखो
चुम्बन देती गाल पर
बादल उतरे ताल पर
चिड़ियों ने
गौनई शुरू की
बरगद की डाली के ऊपर
पत्तों की थापों पर बून्दें
नाच रहीं हैं ठुमक-ठुमक कर
इन्द्रधनुष का मुकुट
सज रहा
है धरती के भाल पर
बादल उतरे ताल पर।