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बादल और पहाड़ / अंशु हर्ष
Kavita Kosh से
बादल और पहाड़ों के बीच रहकर
मैंने कभी तुम्हें बादल बनाया
कभी में पहाड़ बनी
जब तुम्हें एक बादल के रूप में देखा
तो बरस रहे थे तुम गरज़ कर
पहाड़ पे लगातार
और जब मैं बादल बनी
तो पहाड़ के काँधे पे सहारा ले
उसे गले लगाया
उसे अपनेपन का अहसास कराया
दोंनो ही सूरत में
मैंने तुम्हें गरजते बरसते
पत्थर मन ही पाया...