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बादल कथा / विमल कुमार
Kavita Kosh से
बादलों के बारे में
मैं पढ़ रहा था
एक दिन एक क़िताब
क़िताब से ही मैंने जाना
होते हैं बादलों के इतने रंग, इतने रूप
क़िताब वाकई बहुत अच्छी थी
आख़िरी पन्ने पर था
सचमुच का एक बादल
कोने में दुबका चुपचाप
जब मैंने उससे कुछ पूछा
तो जवाब में वह झूमकर बरसा
आख़िर मैं कैसे बचता
जब भीग गई पूरी तरह क़िताब
क़िताब में बैठा वह बादल