भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादल घिर आए / त्रिलोचन
Kavita Kosh से
ताप गया पुरवा लहराई
दल के दल घन ले कर आई
जगी वनस्पतियाँ मुरझाई
जलधर तिर आए
बरखा, मेघ-मृदंग थाप पर
लहरों से देती है जी भर
रिमझिम-रिमझिम नृत्य-ताल पर
पवन अथिर आए
दादुर, मोर, पपीहे, बोले
धरती ने सोंधे स्वर खोले
मौन, समीर तरंगित हो ले
यह दिन फिर आए
(रचना-काल - 22-6-48)