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बादल जब आते हैं / सुदर्शन रत्नाकर

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बादल जब आते हैं
बुहारते हैं प्रकृति की धूल
बुझाते हैं
नदियों की प्यास
लौट आती हैं
मयूर की खुशियाँ।
तिरते हुए बादल
भरते हैं उमंग
मिट्टी के कण-कण में
जग जाता है ममत्व धरा का
अंकुरित हो जाते हैं सूखे बीज
सिर उठा लेती है दूब
भर देते हैं ऊर्जा, डाल देते हैं प्राण
मृत शिराओं में भी।
बादल जब आते हैं,
छा जाता है खुशियों का सतरंगी इन्द्रधनुष
भर जाता है मन का ख़ालीपन
धुल जाते हैं उदासी के सारे रंग।
बंद खिड़की से दिखेंगे बस
धवल-साँवरे बादल
उठो, द्वार खोलो
बाहर निकलो
पीओ ठंडी हवाओं को
 
खेलो नृत्य करती बूँदों के संग
उसके संगीत को सुनो
चेहरे को छूती
बारिश की बूँदों के स्पर्श को
महसूस करो।