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बादल जी / सूर्यकुमार पांडेय
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नेताओं-सा रूप बदलते बादल जी,
सदा क़ाफ़िले में ही चलते बादल जी।
जय-जयकार कर रहे मेढक स्वागत में,
हैं जुलूस के संग निकलते बादल जी।
दुखी देख धरती को आँसू टपकाते,
आँखों में भर नीर टहलते बादल जी।
आसमान में गरज-तरज कर चिल्लाते,
भाषण देते हुए उछलते बादल जी।
बिजली, पानी और हवा को संग लाते,
तन में मस्ती भरे मचलते बादल जी।
दल के दल आते हैं, कीचड़ भर जाते,
हर मौसम में सबको छलते बादल जी।