भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादल टूटे ताल पर / कैलाश गौतम
Kavita Kosh से
बादल
टूटे ताल पर |
आटा सनी हथेली जैसे
भाभी पोंछ गई
शोख ननद के गाल पर |
कजलीवन लौटी पुरवाई
गाता विन्ध्याचल
गंगा में जौ बोता खुलकर
इन्द्रधनुष आंचल
मीठा -मीठा चुंबन हँसकर
मौसम पार गया
नई फसल के भाल पर |
बंद गली की कसम न टूटी
गाड़ी छूट गई
लहरों में ही आर -पार की
माला टूट गई
तन जैसे पिंजरे का पंछी
मन का हाल वही
जैसे ढूध उबाल पर |