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बादल बरसें / मोहसिन नक़वी
Kavita Kosh से
बादल बरसें
बादल इतनी ज़ोर से बरसें
मेरे शहर की बंजर धरती
गुम सुम खाक उड़ाते रस्ते
सुखाए चेहरे पीली अंखियन
बोसीदा मटियाले पैकर ऐसी बहकें
अपने को पहचान न पाएँ
बिजली चमके !
बिजली इतनी ज़ोर की चमके!
मेरे शहर की सूनी गलियाँ
मुद्दत्त के तारीक झरोखे
पुर'इसरार खंडहर वीराने
माज़ी की मद्धम तस्वीरें ऐसी चमकें
सीने का हर भेद ऊगल दें!
दिल भी धड़के
दिल भी इतनी ज़ोर से धड़के!
सोचों की मजबूत तनाबे
ख्वाहिश की अनदेखी गिरहें
रिश्तों की बोझल ज़ंजीरें एक छंके से खुल जाएँ ...
सराय रिश्ते
सारे बंधन
चाहूँ भी तो याद ना आएँ
आखें अपनी दीद को तरसें
बादल इतने ज़ोर से बरसें