बादल हो बरसात न हो तो / कमलेश द्विवेदी
बादल हो बरसात न हो तो क्या मन को भायेगा।
दिल से दिल का साथ न हो तो क्या मन को भायेगा।
घंटों बैठें और करें हम
इधर-उधर की बातें।
दुनिया से क्या लेना पर हों
दुनिया भर की बातें।
कोई मन की बात न हो तो क्या मन को भायेगा।
दिल से दिल का साथ न हो तो क्या मन को भायेगा।
तुझे देखकर कितने सपने
देखें मेरी आँखें।
पर तेरी आँखें भी मेरी
इन नज़रों में झाँकें।
इसमें तेरा हाथ न हो तो क्या मन को भायेगा।
दिल से दिल का साथ न हो तो क्या मन को भायेगा।
कोई किसी खेल को खेले
तो मन से ही खेले।
पर मन कब तक लगा रहेगा
खेले अगर अकेले।
कभी जीत या मात न हो तो क्या मन को भायेगा।
दिल से दिल का साथ न हो तो क्या मन को भायेगा।
मेरा हर दिन न्यौछावर है
तेरे हर लमहे पर।
पर तेरा भी कोई लमहा
मुझ पर हो न्यौछावर।
तेरी यह सौगात न हो तो क्या मन को भायेगा।
दिल से दिल का साथ न हो तो क्या मन को भायेगा।