बादल / अनुज लुगुन
मेरे सर के ऊपर आसमान है
और मैं जहाँ खड़ा हूँ
वहाँ एक खेत की मेंड़ से
पानी के बहने की आवाज आ रही है
मैं जहाँ खड़ा हूँ
वहाँ मेरी जमीन है
मैं एक पहाड़ के सामने खड़ा हूँ
और उसके ऊपर मँडराते
बादलों को देख रहा हूँ
वाकई, यह बहुत खूबसूरत दृश्य है
और इस पर लिखी जा सकती है एक कविता
अपनी प्रियतमा के नाम
लेकिन बार-बार
खेत की मेंड़ से बहते पानी की आवाज
मेरा ध्यान खींच ले जाती है
मैं खेत को देखता हूँ
मेंड़ से बहते पानी को देखता हूँ
पहाड़ को देखता हूँ
और उसके ऊपर मँडराते बादलों को देखता हूँ
मुझे महसूस होता है कि
मेरे सर के ऊपर भी आसमान है
और उस पर बादल मँडरा रहे हैं
मैं जमीन को कस कर
अपने पैरों के नीचे पकड़ लेता हूँ
और भूल जाता हूँ
अपनी प्रियतमा को कविता लिखना
मैं इस वक्त
उस पहाड़ से प्यार कर रहा होता हूँ
जिसके सर पर बादल मँडरा रहे हैं।