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बादल / दिविक रमेश
Kavita Kosh से
क्या खोया है
बादल का जो
इतना गरज रहा है सब पर।
जाने क्या वह
ढूँढ़ रहा है
एक अनूठी टार्च जलाकर।
अरे-अरे क्यों
रोते हो तुम
ढुलकाकर यूँ आँसू बादल।
तुम तो अच्छे
अच्छे बच्चे
क्यों रोते फिर ऐसे पागल।।